• चौथा स्तम्भ मोक्ष का है और 🐘 इसका प्रतीक है :- इस परीक्षा रुपी जीवन में हर मनुष्य में कुछ इच्छाएं रखता है। कुछ इच्छाएं इसी जन्म काल में पूरी हो जाती है। और कुछ अधुरी रह जाती है। और उनके पूरा होने के लिए आत्मा को वापस पृथ्वी पे आना परता है। भगवतद्गीता समझाती है कि हमारी इच्छाएं इन्हीं मूल कारण है। हमारे पृथ्वी पे वापस आने का और अगर कोई भी इच्छा न रखें तो हम जीवन और मृत्यु से मुक्त हो सकते हैं। ये द्वार माफी का भी है, जिन्होंने आपके साथ बुरा किया उनको माफ करके और जिनसे आपने बुरा किया उनसे माफी माँगने से मुक्ति पाई जा सकती है। जब तक आत्मा इन चारों दरबारों :- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को समझ नहीं लेती तब तक आत्मा को बार - बार मनुष्य रुप में आना ही पड़ता है। परीक्षा का समय खत्म होते ही आत्मा शरीर और अन्य सब वस्तुओं का त्याग कर देती है। जो भी इस संसार में रह कर बनाया वो अब किसी और का होगा और आत्मा अपने कर्मों के फैसले के लिए चली जाती है। आत्मा के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब होता है। अपने अच्छे कर्मों के लिए आत्मा कुछ वक्त के लिए स्वर्ग और दूष्कर्मों के लिए नर्क चले जाती है। नर्क में आत्मा को अपने पापों के अनुकुल सजाएं मिलती है। पर सजा खत्म होने के बाद आत्मा को फिर से एक नया शरीर और नया दिमाग मिलता है। इस परीक्षा में फिर से बैठने के लिए और हर परीक्षा में वही सब फिर दोहराया जाएगा ज़िन्दगी के चार स्तम्भ :- धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को समझने के लिए हर जन्म में अपने कई जन्मों के कर्मों के हिसाब से आत्मा को कभी अच्छे कभी बुरे हालातों से जाना पड़ता है। लेकिन जब तक आत्मा परमात्मा के साथ योग को नहीं समझ लेती वो मुक्ति नहीं पा सकती। भगवतद्गीता समझाती है कि मनुष्य अपने शरीर, दिमाग या दिल से भगवान को पा सकती है। शरीर द्वारा किये कर्मों के माध्यम से परमात्मा को पाने को कर्म योग कहते हैं। ऐसे कर्म जो परमात्मा कि इच्छा से हो और दूसरे के कल्याण के लिए। वाल्मीकि ने रामायण लिखे, श्रवण ने अपने माता पिता की सेवा और उन्हें चार धाम की यात्रा करवा के, मदरट्रेसा ने अपने प्यार और सेवा के माध्यम से और मैडम खीडी़ ने वैज्ञानिक खोज में अपने जीवन का बलिदान दे दिए अपने कर्म कर्म से परमात्मा को पाया। भगवतद्गीता समझाती है कि आत्मा दिमाग से भी प्रमात्मा के साथ भी योग लगा सकती है। इसे राजा योग कहते हैं क्योंकि दिमाग मस्तिष्क सब इन्द्रियों का राजा है। एक मनुष्य अपनी आस्था श्वांशप्रणाली, आशन, अभ्यास, साधना और तपस्या से परमात्मा को योग के रास्ते पा लेता है। इस योग को समझने के लिए हमें अंदर की (Energy) यानी चक्र और कुण्डलनी को समझना पडे़गा। आत्मा मस्तिष्क से (Meditation) या ध्यान लगा के परमात्मा के साथ योग लगा सकते हैं। शंकराचार्य, स्वामीपरमहंश, स्वामी वीवेकानंद और उनके जैसे कई योगी इस योग के रास्ते परमात्मा के साथ शंधी लगा पाए। परमात्मा भगवतद्गीता में कहते हैं कि अगर किसी आत्मा को धर्म न भी समझ आए, योग न भी समझ आए वो मेरी शरण में आ जाए तो मैं उसके सारे पाप माफ कर देता हूँ। परमात्मा को अपने दिल की गहराईयों से पुकार पाने को भक्ति योग कहते हैं, चैतन्य महाप्रभु मीराबाई और भगवान हनुमान इस योग के सबसे बड़े उदाहरण हैं। लेकिन कभी आत्मा अपने होने का मुल कारण भूल के धर्म का उलंघन करे, या पाप के रास्ते पे निकल जाए तो उसे ठीक करने के लिए परमात्मा खुद किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। आइए श्रीमदभगवद्गीता, गुरू ग्रंथ साहेब, तुरा, बाइबल, कुरान, या ऐसी किसी भी दिनी किताब को पढ़ के इस ज़िन्दगी के असली माइने को समझें और परमात्मा के साथ योग लगाएं।
धन्यवाद।
गुरुर ब्रह्मा गुरूर विष्णु गुरुर देवोमहेश्वराय।
गुरूर साक्षात परब्रह्म तस्मय श्री गुरुवे नमः।।
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