उसके पात्रता का महत्व के बारे में
गीता आत्मा का शास्त्र है।
एक स्वर के गीत है।
यह हृदय नम्य है।
बुद्धि गम्य नहीं कुछ यूँ समझ लीजिए, जैसे गेहूँ की बोरी तौलने वाली तराजू, से आप सोना नहीं तौलते उसके लिए शुक्क्षमग्राही भौतिक तौला, का उपयोग करते हैं।
उसी प्रकार गीता का रहस्य है हृदय ही महसूस कर सकता है। यह अनुभव की चीज है, तर्क की नहीं आत्मा का स्थान हृदय है। वह केवल सत्य को स्वीकार करता है। बुद्धि का स्थान मस्तक में है, वह लाभ - हानी का सार समझता है। गीता बुद्धि गम्य नहीं है, गीता का पढ़ने समझने की पात्रता किसमें है। इस सम्बन्ध में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। जो भक्त नहीं है, सुनना नहीं चाहता है, और मुझसे द्वेष रखता है। उससे यह गीता का ज्ञान कभी मत कहना, जो इसेभक्तों में कहेगा वह मुझे ही प्राप्त होगा। गीता शास्त्र पढे़गा वह ज्ञान यज्ञ से मेरी पूजा करता है। जो श्रद्धापूर्वक श्रवण करेगा वह पाप से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त होगा।
No comments:
Post a Comment