आज भगत सिंह की
जयंती है। 'युवक'
शीर्षक से यह लेख
1925 में छपा था।
▪️युवावस्था मानव - जीवन का वसंतकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियां सहस्त्र धारा होकर फुट पड़ती हैं। 16 से 25 वर्ष तक हाड़ - चाम के संदूक में संसार - भर के हाहाकरों को समेटकर विधाता बंद कर देता है। युवावस्था देखने में तो शस्यश्यामला वसुंधरा से भी सुंदर है, पर इसके अंदर भूकम्प की - सी भयंकरता भरी हुई है। इसलिए यूअवस्था में मनुष्य के लिए केबल दो ही मार्ग हैं - वह चढ़ सकता है अधः पात के अंधेरे खंदक में। चाहे तो त्यागी हो सकता है युवक, चाहे तो विलासी बन सकता है युवक। वह देबता बन सकता है।
▪️संसार में युवक का ही साम्राज्य है। युवक के कृतिमान से संसार का इतिहास भरा पड़ा है। युवक ही रणचंडी के ललाट की रेखा है। वह महाभारत के भीष्मपर्व की पहली ललकार के समान विकराल है।
अगर किसी विशाल ह्रदय की आवश्यकता हो, तो युवकों से मांगो। रसिकता उसी के बांटे पड़ी है। भावुकता पर उसी का सिक्का है। वह छंद शास्त्र से अनभिज्ञ होने पर भी परतिभाशाली कवि है। वह रसों की परिभाषा नहीं जनता, पर वह कविता का सच्चा मर्मज्ञ है। पतितों के उत्थान और संसार के उद्धारक सूत्र उसी के हाथ में हैं।
▪️ईश्वरीय रचना - कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना है युवक। संध्या समय वह नदी के तट पर घंटो बैठा रहता है। क्षितिज की ओर बढ़ते जाने वाले रक्त -रश्मि सूर्येदेव को आकृष्ट नेत्रों से देखता रह जाता है। उस पार से आती हुई संगीत - लहरी के मन्द प्रवाह में तल्लीन हो जाता है। विचित्र है उसका जीवन। अद्भुत है उसका साहस। अमोघ है उसका उत्साह। वह इक्षा करे तो समाज और जाति को उत्थान कर दे, देश की लाली रख ले, बड़े - बड़े साम्राज्य उलट डाले। वह इस विशाल विश्व रंगस्थल का सिद्धहस्त खिलाड़ी है। आज के युवक ही कल के देश के भाग्य -निर्माता हैं। वे ही भविष्य के सफलता के बीज हैं।
#शहीद भगत सिंह के पुण्यतिथि पर उन्हे कोटि - कोटि नमन 🙏
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