Monday, 23 December 2019

Bhagwat Geeta Saar -How to God Life and Gyan

                           ।।ॐ।। 

• चौथा स्तम्भ मोक्ष का है और  🐘 इसका प्रतीक है :- इस परीक्षा रुपी जीवन में हर मनुष्य में कुछ इच्छाएं रखता है। कुछ इच्छाएं इसी जन्म काल में पूरी हो जाती है। और कुछ अधुरी रह जाती है। और उनके पूरा होने के लिए आत्मा को वापस पृथ्वी पे आना परता है। भगवतद्गीता समझाती है कि हमारी इच्छाएं इन्हीं मूल कारण है। हमारे पृथ्वी पे वापस आने का और अगर कोई भी इच्छा न रखें तो हम जीवन और मृत्यु से मुक्त हो सकते हैं। ये द्वार माफी का भी है, जिन्होंने आपके साथ बुरा किया उनको माफ करके और जिनसे आपने बुरा किया उनसे माफी माँगने से मुक्ति पाई जा सकती है। जब तक आत्मा इन चारों दरबारों :- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को समझ नहीं लेती तब तक आत्मा को बार - बार मनुष्य रुप में आना ही पड़ता है। परीक्षा का समय खत्म होते ही आत्मा शरीर और अन्य सब वस्तुओं का त्याग कर देती है। जो भी इस संसार में रह कर बनाया वो अब किसी और का होगा और आत्मा अपने कर्मों के फैसले के लिए चली जाती है। आत्मा के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब होता है। अपने अच्छे कर्मों के लिए आत्मा कुछ वक्त के लिए स्वर्ग और दूष्कर्मों के लिए नर्क चले जाती है। नर्क में आत्मा को अपने पापों के अनुकुल सजाएं मिलती है। पर सजा खत्म होने के बाद आत्मा को फिर से एक नया शरीर और नया दिमाग मिलता है। इस परीक्षा में फिर से बैठने के लिए और हर परीक्षा में वही सब फिर दोहराया जाएगा ज़िन्दगी के चार स्तम्भ :- धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को समझने के लिए हर जन्म में अपने कई जन्मों के कर्मों के हिसाब से आत्मा को कभी अच्छे कभी बुरे हालातों से जाना पड़ता है। लेकिन जब तक आत्मा परमात्मा के साथ योग को नहीं समझ लेती वो मुक्ति नहीं पा सकती। भगवतद्गीता समझाती है कि मनुष्य अपने शरीर, दिमाग या दिल से भगवान को पा सकती है। शरीर द्वारा किये कर्मों के माध्यम से परमात्मा को पाने को कर्म योग कहते हैं। ऐसे कर्म जो परमात्मा कि इच्छा से हो और दूसरे के कल्याण के लिए। वाल्मीकि ने रामायण लिखे, श्रवण ने अपने माता पिता की सेवा और उन्हें चार धाम की यात्रा करवा के, मदरट्रेसा ने अपने प्यार और सेवा के माध्यम से और मैडम खीडी़ ने वैज्ञानिक खोज में अपने जीवन का बलिदान दे दिए अपने कर्म कर्म से परमात्मा को पाया। भगवतद्गीता समझाती है कि आत्मा दिमाग से भी प्रमात्मा के साथ भी योग लगा सकती है। इसे राजा योग कहते हैं क्योंकि दिमाग मस्तिष्क सब इन्द्रियों का राजा है। एक मनुष्य अपनी आस्था श्वांशप्रणाली, आशन, अभ्यास, साधना और तपस्या से परमात्मा को योग के रास्ते पा लेता है। इस योग को समझने के लिए हमें अंदर की (Energy) यानी चक्र और कुण्डलनी को समझना पडे़गा। आत्मा मस्तिष्क से (Meditation) या ध्यान लगा के परमात्मा के साथ योग लगा सकते हैं। शंकराचार्य, स्वामीपरमहंश, स्वामी वीवेकानंद और उनके जैसे कई योगी इस योग के रास्ते परमात्मा के साथ शंधी लगा पाए। परमात्मा भगवतद्गीता में कहते हैं कि अगर किसी आत्मा को धर्म न भी समझ आए, योग न भी समझ आए वो मेरी शरण में आ जाए तो मैं उसके सारे पाप माफ कर देता हूँ। परमात्मा को अपने दिल की गहराईयों से पुकार पाने को भक्ति योग कहते हैं, चैतन्य महाप्रभु मीराबाई और भगवान हनुमान इस योग के सबसे बड़े उदाहरण हैं। लेकिन कभी आत्मा अपने होने का मुल कारण भूल के धर्म का उलंघन करे, या पाप के रास्ते पे निकल जाए तो उसे ठीक करने के लिए परमात्मा खुद किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। आइए श्रीमदभगवद्गीता, गुरू ग्रंथ साहेब, तुरा, बाइबल, कुरान, या ऐसी किसी भी दिनी किताब को पढ़ के इस ज़िन्दगी के असली माइने को समझें और परमात्मा के साथ योग लगाएं। 
             धन्यवाद। 
गुरुर ब्रह्मा गुरूर विष्णु गुरुर देवोमहेश्वराय। 
गुरूर साक्षात परब्रह्म तस्मय श्री गुरुवे नमः।। 

Sunday, 22 December 2019

गीता का महत्व

गीता का महत्व एवं पात्रता 
उसके पात्रता का महत्व के बारे में 
गीता आत्मा का शास्त्र है। 
एक स्वर के गीत है। 
यह हृदय नम्य है। 
बुद्धि गम्य नहीं कुछ यूँ समझ लीजिए, जैसे गेहूँ की बोरी तौलने वाली तराजू, से आप सोना नहीं तौलते उसके लिए शुक्क्षमग्राही भौतिक तौला, का उपयोग करते हैं। 
उसी प्रकार गीता का रहस्य है हृदय ही महसूस कर सकता है। यह अनुभव की चीज है, तर्क की नहीं आत्मा का स्थान हृदय है। वह केवल सत्य को स्वीकार करता है। बुद्धि का स्थान मस्तक में है, वह लाभ - हानी का सार समझता है। गीता बुद्धि गम्य नहीं है, गीता का पढ़ने समझने की पात्रता किसमें है। इस सम्बन्ध में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। जो भक्त नहीं है, सुनना नहीं चाहता है, और मुझसे द्वेष रखता है। उससे यह गीता का ज्ञान कभी मत कहना, जो इसेभक्तों में कहेगा वह मुझे ही प्राप्त होगा। गीता शास्त्र पढे़गा वह ज्ञान यज्ञ से मेरी पूजा करता है। जो श्रद्धापूर्वक श्रवण करेगा वह पाप से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त होगा। 


Saturday, 21 December 2019

Bhagwat Geeta Saar -How to reach God, Life and Gyan

                        ॐ
मैने श्रीमदभगवद्गीता तब तक नहीं पढी़ थी। जब तक हमें यह ज्ञान हुआ कि हम सभी आत्माएं हैं। और ये ज़िन्दगी हम आत्माओं के लिए एक इम्तहान है, अपने अन्दर से सबसे अच्छे रूप को बाहर निकालने का और श्रीमदभगवद्गीता इस इम्तहान पास करने की एक अहम किताब है। श्रीमदभगवद्गीता के अट्ठारह अध्याय हैं। और ये संस्कृत में परमात्मा द्वारा दी गई भी समय के साथ संस्कृत भाषा रोजमर्रा की ज़िन्दगी से निकल गई और ये ज्ञान मनुष्य से दूर हो गया। समय - समय पर श्रीमदभगवद्गीता के साधारण अक्षर में अनुवाद किया गया। 
ये ज्ञान परमात्मा ने भगवान श्री कृष्ण के द्वारा धर्म युद्ध महाभारत की रणभूमि कुरूक्षेत्र में अर्जुन को कुछ पाँच हजार साल पहले दिया। ये वो वक्त था जब धर्म का बार - बार उलंघन हुआ परमात्मा का डर मनुष्य से निकल गया। लालच की होर में भाई ने भाई को मारने की कोशिश की। और यही नहीं विवाहिता औरत को भरी सभा में अपमानित किया गया। इससे पहले की मनुष्य जाती धर्म से निकल कर पूर्णरूप से कलयुग में जाती युद्ध की रणभूमि में युद्ध से कुछ पहले परमात्मा ने गीता भगवान श्री कृष्ण के द्वारा मनुष्य जाती के कल्याण के लिए दी। ऐसे ही जैसे दूरा मौजेस को, कोष्टल जीसस को, और कुराण प्रौफिट मोहम्मद को दी।गीता, बाइबल कुराण, तुरा, और गुरु ग्रंथ साहेब परमात्मा द्वारा दी गई किताबे हैं। जो किसी एक धर्म के लिए नहीं पुरी मनुष्य जाती के लिए है, पुरी इंसानियत के लिए है। क्योंकि ये आत्माओं को परमात्मा के बारे में, उसकी श्रृष्टि के बारे में। सबसे अहम ये उन कायदों के बारे में समझाती है, जिनका आत्मा को मनुष्य के रुप में हर हाल में पालन करना होगा, रक्षा करनी होगी और इन्हीं कायदों की बुनियाद पे एक आत्मा को शरीर त्याग करने के बाद परखा जाएगा। और इस परीक्षा से पास होने पे हमेंशा के लिए जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिलेगी। परमात्मा भगवतद्गीता में कहते हैं कि "मैं ही सबकी शुरुआत हूँ, मैं शुरू से भी पहले था और सब खत्म होने के बाद भी रहूंगा,सब मुझमें है और मैं सब में हूँ,, 
जो भी तुम छू सकते हो, देख सकते हो, चख सकते हो या सुन सकते हो वो सब मैं हूँ। ये नदियाँ, पहाड़, सूर्य, ग्रहण, चाँद, सितारे सब मैने बनाया हूँ, मैने ही भगवान, शैतान, राक्षस और इंसान बनाया मैं सर्वव्यापी हूँ, सब में रहता हूँ, सब में मैं हूँ, मैं ही हूँ, मै ही ब्रह्मा बन के सब बनाता हूँ, रूद्र बन के सब नष्ट करता हूँ, मैं ये श्रृष्टि बनाता हूँ, तोरता रहूंगा ताकि आत्माओं को मौके मिल सके जन्म और मृत्यु से मोक्ष पाने को हमेशा के लिए परमात्मा के साथ रहने को। भगवतद्गीता कहती है कि सबसे बड़ी परीक्षा के लिए। 
परमात्मा ने प्राकृतिक का निर्माण पाँच तत्व :- हवा, अग्नि, जल, पृथ्वी और ईथर से किया जिन्हें हम छू के, चख के, देख के, सूंघ के समझ सकते हैं। पर खुद परमात्मा इन इन्द्रियों के समझ से बाहर हैं। उन्हें आत्मा इन इन्द्रियों से नहीं जान सकती है। आत्मा पाँच इन्द्रियों के साथ वैसे ही है। जैसे एक लोहे का रोबट बनाने वाले का कोई पता नहीं। अर्जुन को भी परमात्मा का विराट रुप देखने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने दिव्य नेत्र दिये। भगवतद्गीता समझाती है कि आत्मा आजन्मीय है। इसे कोई मार नहीं सकता, कोई जला नहीं सकता, डूबा नहीं सकता, काट नहीं सकता लेकिन आत्मा को परमात्मा के साथ हमेशा रहने लिए ये परीक्षा रुपी जीवन में बैठना ही पडे़गा, इस परीक्षा के लिए परमात्मा से बिछुड़कर आत्मा को पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में जन्म लेना पड़ता है। और अट्ठासी करोड़ योनीयों को जीने और भागने के बाद एक आत्मा को मनुष्य का शरीर और दिमाग मिलता है। सबसे बड़ी मर्यादा की परीक्षा में बैठने के लिए। हर मनुष्य को इस पूरी परीक्षा के दौरान तरह - तरह की अच्छी और बुरी भावनाओं के चक्रव्यूह में अपने ही भाई बहन या मित्रों के साथ डाला जाता है। जिसमें हर आत्मा को अपने अंदर के तामसिक और राजसिक अवगुणों से निकल के सात्विक जीवन में प्रवेश करने के मौके मिलते हैं। हमारे तामसिक गुण वो हैं,जो हमारे अंदर ही हीन भावना पैदा करके हमें खुद को उदास और नुकसान पहुँचाते हैं और हमारे राजसिक गुण, हमें ईर्ष्यालु और लोभी बना के दुसरों के प्रति नुकसान पहुँचा सकते हैं। इस परीक्षा के दौरान हर आत्मा को तामसिक और राजसिक गुणों को खत्म करके अपने शात्वीक गुणों से परिचित होना पड़ेगा। 
शात्वीक गुण वो है जो आत्मा को अपने आसपास की गुणों से जोड़े और उन्हें प्यार करना सिखाते हैं। परीक्षा के दौरान हर आत्मा को जीवन के चारो स्तम्भ :- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान पा के ही मुक्ति मिलती है। 
यही वो द्वार है जिन्हें समझकर ही आत्मा परमात्मा को समझ सकती है। पहला द्वार धर्म का है शेर इसका प्रतीक है। 
धर्म वही है जो गीता में लिखा हुआ है। वेदों में लिखा हुआ है। गुरु ग्रंथ साहेब, बाइबिल, कुरान में लिखा हुआ है। धर्म वही है जो धारण किया हुआ है। जिसे आपका दिल मानता है। जैसे झूठ नहीं बोलना,चोरी नहीं करना, दूसरों को नुकसान नहीं देना यही सब धर्म है। और हर आत्मा को अपने जीवन काल में हर समय धर्म का पालन करना होगा और उसकी रक्षा करनी होगी। दूसरा अर्थ का है और घोरा इसकी प्रतीक है। 
आत्मा अपने हर जीवन काल में अपने पृथ्वी पर होने का अर्थ या मूल कारण समझेंगे। इस ज़िन्दगी में भोगने वाली चीजें या रिस्तों का आनंद लेगी अच्छा बेटा या अच्छी बेटी, अच्छा भाई या अच्छी बहन, अच्छा पति या अच्छी पत्नी बनके हर दुनियावी रिस्ते पर खड़ी उतरेगी और इस परीक्षा को पास करेगी। 
• तीसरा द्वार काम का है :- भगवतद्गीता समझाती है हर मनुष्य के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, और ईर्ष्या जैसी ६ छै भावनाएं हमें अपने या दूसरे के प्रति नुकसान पहुँचा सकती है। इन भावनाओं को हर मनुष्य को हमेशा अपने नियंत्रण में रखना होगा, क्योंकि इनके बहाव में किया हुआ कोई भी काम हमारे जीवन भर के परेशानी का कारण बन सकती है। और एक आत्मा संतोष और सादगी से हमेशा के लिए इन भावनाओं पर विजय प्राप्त कर सकती है। 
• चौथा स्तम्भ मोक्ष का है  और 🐘  इसका प्रतीक है :-इस परीक्षा रुपी जीवन में हर मनुष्य में कुछ इच्छाएं रखता। कुछ इच्छाएं इसी जन्म काल में पूरी हो जाती है। और कुछ अधुरी रह जाती है। और उनके पूरा होने के लिए आत्मा को वापस पृथ्वी पर आना परता है। भगवतद्गीता समझाती है कि हमारी इच्छाएं इन्हीं मूल कारण है हमारे पृथ्वी पर वापस आने का और अगर कोई भी इच्छा न रखें तो हम जीवन और मृत्यु से मुक्त हो सकते हैं। ये द्वार माफी का भी है।